*जैन समाज के आराध्य देव चलते फिरते सिद्ध भगवान आचार्य श्री विद्यासागर जी का हुआ समाधि पूर्वक देह परिवर्तन*
टीकमगढ़ जैन समाज की आराध्य देव युग दृष्टा ब्रहमांड के देवता संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज आज दिनांक 17 फरवरी शनिवार तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के रात्रि में2:35 बजे हुए ब्रह्म में लीन।
अखिल भारतीय जैन युवा फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र जनता ने जानकारी देते हुए बताया कि
आचार्य गुरुदेव 2018 में अतिशय क्षेत्र पपोरा जी आए थे 69 दिन की ग्रीष्मकालीन कालीन बचाना का जैन समाज को लाभ प्राप्त हुआ था
सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण की।
पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण किया एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया और अखंड मौन धारण कर लिया था 6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली थी और उसी दिन आचार्य पद का त्याग की औपचारिक रूप से घोषणा की थी उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी बात हुई थी
परमपूज्य गुरूदेव ने पूरी जागृत अवस्था में अंत समय तक प्रभु स्मरण के साथ उपस्थित निर्यापक श्रमण मुनि श्री योगसागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री प्रसादसागर जी मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर जी मुनिश्रीपूज्यसागर जी मुनि श्री निरामयसागर जी मुनिश्री ऐ.निश्चयसागर ऐ श्री धैर्यसागर जी की उपस्थिति और संबोधन के चलते नश्वर देह का चन्द्रगिरि तीर्थ पर रात्रि २-३५ पर त्याग कर दिया ।
रविवार को श्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे से निकाला गया एवम् चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया गयाh
टीकमगढ़ जैन समाज ने अपने-अपने प्रतिष्ठान बंद कर बाजार जैन मंदिर एवं सभी जैन मंदिर पहुंचकर णमोकार मंत्र का पाठ किया