नए कानून को सही रूप से समझाया जाए: अविरल अमिताभ जैन
नए कानून को किसी भी रूप में काला कानून नही कहा जा सकता है
भारतीय न्याय सहित में प्रदत्त नए कानून कि वजह से जो पूरे देश में आंदोलन चल रहा है उस विषय पर हाईकोर्ट में वकील अविरल अमिताभ जैन ने बताया की हिट एंड रन विषय पर भारतीय न्याय संहिता 2023 में प्रदत्त कानून किसी भी तरह से काला कानून नही कहा जा सकता है। जो लोग ये कहते है बे या तो इस नए कानून को ठीक तरीके से नहीं समझे है या जानते हुए इसको राजनीतिक रूप देकर कुछ और ही हासिल करना चाहते है। सर्व प्रथम ये स्पष्ट करना आवश्यक है की ये कानून कोई नया कानून नही है ये पुरानी भारतीय दण्ड सहित में भी था केवल अंतर है तो सिर्फ सजा के प्रावधान का। पहले इस कानून के तहत सजा सिर्फ 2 वर्ष तक के कारावास की थी लेकिन नए कानून में ये बड़ा कर 10 वर्ष तक कर दी गई है।
इस नए कानून को ट्रक और बस चालकों से जोड़ने से पहले ये स्पष्ट करना आवश्यक है की कही भी सीधे रूप से ये नही कहा गया है की ये सिर्फ ट्रक या बस चालकों पर लागू होता है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 104(2) के अनुसार ये कहा गया है की यदि कोई भी व्यक्ति उतावलेपन या उपेक्षा पूर्ण किसी कार्य से किसी व्यक्ति की हत्या कारित करेगा जो की अपराधिक मानव वध नहीं है और घटना स्थल से निकल कर भागेगा या घटना के तुरंत पश्चात पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को जानकारी नहीं देगा तो उसे कारावास की किसी भी अवधि जो की दस वर्ष की हो सकेगी से दंडित किया जायेगा और जुर्माने के लिए भी दाई होगा।
अब अगर कोई भी व्यक्ति इस प्रावधान को साधारण रूप से पड़ेगा और समझेगा तब भी सरकार की मनसा का बहुत ही सरलता से निष्कर्ष निकाल सकता है की ये कानून पूर्ण रूप से सुधारात्मक दृष्टि से लाया गया है। सर्वप्रथम इस देश के हर नागरिक से नागरिक होने के कारण ये अपेक्षा की जाती है की वह कोई भी कृत्य उतावलेपन या उपेक्षा कृत ढंग से ना करे क्योंकि इस तरह से एक कृत्य से आस पास के पूरे वातावरण पर खतरा होता है और इसीलिए ये अपराध बनता है। जिस प्रकार हर स्कूल बस के पीछे लिखा होता है की उपेक्षा कृत वाहन चलाने(रैश एंड नेगलिजेंट ड्राइविंग) पर आप पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकते है उसी प्रकार से ये नया कानून है तो इसमें गलत क्या है। ये कानून पूर्ण रूप से उपेक्षा कृत कार्य को रोकने के लिया है न की किसी को दंड देने के लिए। दूसरा ये कानून नागरिकों में नागरिकता का भी बोध कराता है की यदि कोई हादसा हो भी जाता है तो बहा से भागने की वजह घायल व्यक्ति की मदद करे ताकि उसको शीघ्र उपचार दिया जा सके और बड़ी हानि होने से बचाया जा सके। और यदि मान ले की पुलिस द्वारा उपेक्षा कृत करने वाले व्यक्ति को पकड़ भी लिया जाता है तो इस कानून में अधिकतम सजा दस वर्ष है न की सिर्फ दस वर्ष की सीधी सजा है जैसा दूसरे अन्य कानूनों में होती है। यहां कोर्ट अपने विवेक अनुसार ही सजा सुनाएगी। अगर इस दृष्टिकोण को आधार मान ले की सजा बहुत ज्यादा है तो फिर तो उम्र कैद जैसी सजा हो ही नही सकती। इसी विषय पर भारत सरकार के तात्कालिक ग्रह सचिव श्री अजय कुमार भल्ला ने भी स्पष्ट किया है की सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करते हुए ही सजा में वृद्धि की गई है।
इसी लिया नया कानून किसी भी रूप से काला कानून नही कहा जा सकता क्योंकि काला कानून तो बो होता है जो किसी व्यक्ति के अधिकारों को उससे छीन ले जबकि नया कानून तो पूरी तरह से न्याय और सुधारात्मक दृष्टिकोण रखता है। अब एसे में जो अंदोलन चल रहा है इसमें आवश्यकता है की सभी आंदोलन कर्ता को और उनके संगठन को सही रूप से नया कानून समझाया जाए और जो भी लोग इस आंदोलन की आड़ में राजनेतिक फायदा उठाने का उद्देश्य रखते है उनके मनसूबों पर पानी फेरा जाए। निश्चित रूप से हरतालो से देश को आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही साथ आम नागरिकों को भी मूलभूत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए देश की प्रगति में भी मिथ्यात्मक जानकारी के कारण आंदोलन से नुकसान ही होता है और ये बात नए भारत को वक्त के साथ समझनी होगी।