- सेवा पखवाड़ा में स्वास्थ्य सेवाओं की खुली पोल, डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचे ड्यूटी स्थल पर
- अधीक्षक की मिलीभगत से बिना अस्पताल आए ही उठाया जा रहा वेतन, स्वास्थ्य विभाग पर सवाल
- प्राइवेट प्रैक्टिस में व्यस्त सरकारी डॉक्टर, ड्यूटी से लगातार गायब रहने की शिकायतें आम
- ग्रामीणों ने जताया आक्रोश, डॉक्टरों की मनमानी रोकने और सख्त कार्रवाई की मांग उठी
रायबरेली। सशक्त नारी, समृद्ध परिवार कार्यक्रम के तहत चल रहे सेवा पखवाड़ा में डॉक्टरों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। कई ड्यूटी स्थलों पर डॉक्टर समय से नहीं पहुंचे। कहीं डॉक्टर आए भी तो खानापूर्ति करके तुरंत लौट गए। इससे महिला मरीज और किशोरियां मायूस होकर लौट गईं।
सोमवार को सेहरामऊ केंद्र पर डॉ. निधी गौतम नहीं पहुंचीं। महिलाएं उनका घंटों इंतजार करती रहीं और आखिरकार निराश होकर घर लौट गईं। दुलारेपुर केंद्र पर डॉ. अर्चिता वर्मा थोड़ी देर रुककर खानापूर्ति कर चली गईं। डॉ. सदफ असगर और डॉ. अर्चिता वर्मा लखनऊ से एक ही कार से आईं और ड्यूटी को महत्व देने के बजाय समय देखकर लौट गईं। एकौनी पीएचसी में भी मरीज डॉ. सदफ असगर का इंतजार करते रहे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि खीरों सीएचसी व उससे जुड़े पीएचसी–एकौनी, देवगांव, दृगपालगंज, सेमरी और राजकीय महिला चिकित्सालय पाहो में अधिकांश डॉक्टरों की ड्यूटी से गायब रहने की शिकायतें लगातार होती हैं। इसके बावजूद डॉक्टरों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। ग्रामीणों का आरोप है कि अधीक्षक की मिलीभगत से डॉक्टर बिना अस्पताल आए ही वेतन ले रहे हैं।
ड्यूटी से बचने के नए तरीके
ग्रामीणों ने बताया कि कई डॉक्टर बिना ड्यूटी स्थल पर पहुंचे पुराने स्वास्थ्य मेले की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालते हैं और खानापूर्ति कर लेते हैं। सेवा पखवाड़ा में भी यही रवैया देखने को मिला।
प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप
डॉ. निधी गौतम और डॉ. इति चौधरी पर ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि वे ड्यूटी से अक्सर गायब रहती हैं और प्राइवेट प्रैक्टिस करती हैं। वहीं आरबीएसके के संविदा डॉक्टर फारूकी हफ्ते में केवल दो दिन ही आते हैं। उन पर आरोप है कि ड्यूटी समय में लखनऊ के एक निजी अस्पताल में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं।
सेवा पखवाड़ा हो रहा बेअसर
ग्रामीणों का कहना है कि सेवा पखवाड़ा का मकसद महिलाओं और किशोरियों को स्वास्थ्य सुविधाएं देना है, लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही और मनमानी से यह कार्यक्रम केवल औपचारिकता बनकर रह गया है।