नई दिल्ली, जुलाई 2025 –
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह द्वारा सहमति से यौन संबंध की कानूनी उम्र (वर्तमान में 18 वर्ष) को लेकर दिए गए तर्कों ने देशभर में नई बहस को जन्म दिया है। जयसिंह ने कोर्ट से अनुरोध किया कि 16 से 18 वर्ष के किशोरों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में न रखा जाए।
अपने लिखित तर्क में जयसिंह ने कहा,
“उम्र पर आधारित कानूनों का उद्देश्य बच्चों को शोषण से बचाना होना चाहिए, न कि सहमति पर आधारित और उम्र के लिहाज से उचित संबंधों को अपराध मान लेना।”
उनका कहना है कि किशोरों के बीच सहमति से बने संबंध न तो शोषण की श्रेणी में आते हैं और न ही अत्याचार के अंतर्गत। ऐसे मामलों को पॉक्सो (POCSO) जैसे कठोर क़ानूनों के अंतर्गत लाना, किशोरों के जीवन को अनावश्यक रूप से आपराधिक बना देता है।
हालाँकि, केंद्र सरकार ने इस तर्क का विरोध किया है। सरकार का कहना है कि यदि ऐसे अपवाद की अनुमति दी जाती है, तो नाबालिग बच्चों का शोषण और अत्याचार और अधिक बढ़ सकता है। सरकार का रुख स्पष्ट है कि 18 साल से कम उम्र को नाबालिग मानना भारतीय कानून की मूल भावना है और इससे कोई छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
यह मामला न केवल क़ानूनी बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी बेहद संवेदनशील है। विशेषज्ञों का मानना है कि बदलते सामाजिक परिवेश के साथ ऐसे विषयों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, वहीं बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है, यह आने वाले समय में देश के किशोर न्याय तंत्र और यौन शिक्षा नीति पर गहरा प्रभाव डालेगा।
#इंदिरा_जयसिंह #सहमति_से_सेक्स #POCSO #SupremeCourt #किशोर_न्याय #IndianLaw #SexualConsent #MinorRights #LegalAgeDebate #ChildProtection