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इस मनुष्य शरीर को पाने का असली उद्देश्य भूलने के कारण ही मनुष्य आज तकलीफों से घिरा हुआ है- उमाकान्त जी महाराज

Published on: 06-12-2024

-जीवात्मा को जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े आदि की योनियों में डालकर क्यों तकलीफे दी जाती है

शकील अहमद

लखनऊ। विश्व विख्यात निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वक्त गुरु परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने लखनऊ में दिए सतसंग संदेश में बताया कि जीव जब मनुष्य शरीर में रह कर सही जानकारी के अभाव में कर्मों को इक्कठा कर लेता है, तब उसकी सजा इन्हीं चौरासी लाख योनियों में उसे मिलती है। जीव – जंतु, पेड़ – पौधे, कीड़े – मकोड़े आदि ये सभी चौरासी लाख योनियां कर्मों की सजा मिलने का ही माध्यम हैं। चाहे लाखों करोड़ों वर्ष भी लग जाएं, इन योनियों में जीव को भटकना ही पड़ता है तब जाकर उसे मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है।

भाग्य कहां और कैसे बनता है ?

कर्मों से ही भाग्य बनता है। जो जैसा कार्य करता है उसी के हिसाब से उसका कर्म बनता है। बुरा कर्म करने वाला दुःखी रहता है, वहीँ कर्म जब तक अच्छे रहे, सुखी रहते हैं। पाप और पुण्य के अनुसार ही अच्छा-बुरा प्रारब्ध (भाग्य) बनता है। जब कई जन्मों के पुण्य इकट्ठा होते हैं और भाग्य जोरदार बन जाता है, तब ये मनुष्य शरीर मिलता है। जब भाग्य से सतसंग मिलता रहता है, तब कम प्रयास में ही ये जीव भवसागर से निकल जाता है।

भवसागर किसे कहते हैं ?

जहां पर आप रहते हो, इस दुनिया – संसार को ही भवसागर कहा गया है क्योंकि यहाँ सुख और दुःख समय-समय पर लगा रहता है, घटता-बढ़ता भी रहता है, यही मृत्युलोक भी कहा जाता है, यही भवसागर भी है।

भगवान पर से लोगों का विश्वास ही टूटता चला जा रहा है

आज के इस खराब समय में, मनुष्य पर तकलीफों का घेराव इतना ज्यादा हो गया कि अपने सच्चे ईश्वर, खुदा, गॉड, भगवान पर से उसका ही भरोसा उठता जा रहा है। इस वक्त पर जिन लोगों के घरों में बीमारी लगी रहती है, लड़ाई-झगड़ा कुछ न कुछ हो ही जाता है, कोई न कोई समस्या आ जाती है, जिससे टेंशन बना रहता है, आप विश्वास के साथ “जयगुरूदेव” नाम की ध्वनी बोलो और लोगों को बुलवाओ, ताकि लोगों को तकलीफों में आराम मिल जाए। नामध्वनि इस प्रकार से बोलना रहेगा …जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय-जयगुरुदेव।

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