पाटन, उन्नाव। बीघापुर तहसीलदार न्यायालय द्वारा हाल ही में सुनाया गया एक फैसला इस समय तहसील में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। करीब 26 बीघा बेशकीमती भूमि की पंजीकृत वसीयत को नजरअंदाज कर तहसीलदार न्यायालय ने वरासत का आदेश पारित कर दिया, जिससे प्रशासनिक अधिकारियों, लेखपाल और राजस्व निरीक्षक की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। इस फैसले को लेकर अधिवक्ताओं और आमजन के बीच बहस छिड़ी हुई है।
चार साल से विवाद में थी करोड़ों की जमीन
मामला तहसील क्षेत्र के पाल्हेपुर और ऊंचगांव में स्थित 26 बीघा भूमि से जुड़ा है। पाल्हेपुर निवासी शिशिर त्रिवेदी के अनुसार, अश्वनी कुमार त्रिवेदी और उनकी पत्नी शशिबाला निःसंतान थे। अश्वनी कुमार ने वर्ष 1985 में पिता संतोष त्रिवेदी के निधन के बाद शिशिर और उनकी बहन का पालन-पोषण किया था। उनकी सेवा और देखभाल से प्रभावित होकर 5 नवंबर 2020 को अश्वनी ने अपनी संपूर्ण चल-अचल संपत्ति की पंजीकृत वसीयत शिशिर की पत्नी अनीता और पुत्र प्रशांत के नाम कर दी।
अश्वनी कुमार की 15 दिसंबर 2020 को मृत्यु हो गई, जिसके दो दिन बाद शिशिर ने वसीयत के आधार पर नामांतरण के लिए तहसील में प्रार्थना पत्र दिया। लेकिन अश्वनी कुमार के भतीजे आनंद कुमार और नंद कुमार ने इस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए समय मांगा और वसीयत के गवाहों पर दबाव बनाने के लिए उन पर जालसाजी का मुकदमा भी दर्ज करवा दिया।
चार साल बाद आया फैसला, वसीयत को किया दरकिनार
लगभग चार साल तक चले इस विवाद पर 21 फरवरी 2025 को तहसीलदार न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए वसीयत को अमान्य कर दिया और वरासत के आधार पर मृतक के भतीजों के पक्ष में जमीन का नामांतरण कर दिया। इस निर्णय के बाद तहसील क्षेत्र में प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।
अधिवक्ताओं ने उठाए सवाल
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जीवित गवाहों के मौजूद रहते हुए पंजीकृत वसीयत को अनदेखा करना संदेहास्पद है। इस तरह के फैसले से पंजीकृत वसीयत की कानूनी वैधता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। अधिवक्ताओं का मानना है कि यदि पंजीकृत वसीयत को मान्यता नहीं दी जाएगी, तो भविष्य में इसका कोई महत्व नहीं रह जाएगा।
तहसीलदार ने दिया बयान
इस पूरे प्रकरण पर तहसीलदार अरसला नाज का कहना है कि कोई भी मामला साक्ष्यों और बहस के आधार पर ही निष्पादित किया जाता है। यदि किसी पक्ष को निर्णय से असहमति है, तो उनके पास अपील का अधिकार सुरक्षित है।
इस फैसले के बाद तहसील में चर्चा तेज हो गई है कि क्या भविष्य में पंजीकृत वसीयत को कानूनी मान्यता मिलेगी या नहीं? मामला अब उच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने की संभावना के चलते और अधिक दिलचस्प हो सकता है।