जब कोई महिला विधायक बनती है तो उसका पति सदन में बोलने के लिए नहीं जाता है हर किसी महिला प्रधान को पुरस्कार मिलता है तो उसे महिला पुरस्कार को मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जी के मंच पर भेज दिया जाता है और वहां पर जाकर के गांव का प्रतिनिधित्व करती है लेकिन जब ग्राम सभा में 15 अगस्त 26 जनवरी या 2 अक्टूबर के राष्ट्रीय दिवस के उपरांत अधिकतर प्रधान पति स्वयं झंडा फहरा करके अपने को प्रधान घोषित करते हैं।
देश के आजादी के गणतंत्र के 76 वर्ष के बाद भी महिला ग्राम प्रधानों बंद कमरे में दुल्हन समझ करके बैठाया जा रहा है जबकि बहुत सारी महिला ग्राम प्रधान ने अपने पति से ज्यादा पढ़ी लिखी हैं लेकिन उनको दबाने का प्रयास किया जाता है प्रधान पत्तियों का इतना महत्वाकांक्षी होना लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
इस पूरे विषय को लेकर के युवा संघर्ष मोर्चा कल मुख्यमंत्री जी को अवगत कराएगा और इस बात के लिए कम से कम राष्ट्रीय दिवस पर तो महिला ग्राम प्रधानों को आगे आकर के पंचायत भवन पर स्वयं झंडा फहरा करके गांव की उन्नति और मार्गदर्शन के लिए कार्य करना चाहिए वहीं अगर इसको दूसरे दिशा में ज्योतिष विभाग से भी देखा जाए तो बहुत सारे ग्राम प्रधान जब पति के रूप में चुनाव लड़ते हैं स्वयं चुनाव लड़ते हैं तो चुनाव जीत नहीं पाते हैं।
अपनी पत्नी के भाग्य से ही उनकी राजनीति आगे बढ़ती है क्योंकि उनके ग्रह कुंडली में सूर्य मजबूत होता है जिससे वह प्रधान का चुनाव जीते हैं और प्रधान पति प्रतिनिधि बनकर के गांव में अपने नेतागिरी ठीक-ठाक करते हैं तो ऐसी पत्नियों को जिन्हें आप फार्म भरवाते हैं।
उन्हें भी आगे करिए यह आपकी रूढ़िवादी मानसिकता गांव को पीछे की तरफ धकेल रही है और गांव की बहन बेटियां जो अभी भी पीछे हैं महिला ग्राम प्रधानों के आगे आने से उनको भी मनोबल प्राप्त होगा
शैलेन्द्र पाण्डेय advo
उपाध्यक्ष सिविल बार चन्दौली