Latest Posts
‘डूम्सडे प्लेन’: ‘फ्लाइंग क्रेमलिन’ क्या है? पुतिन का जेट सबसे अधिक ट्रैक की जाने वाली उड़ान थीशेयर बाजार आज:निफ्टी50 26,000 के ऊपर खुला; बीएसई सेंसेक्स सपाट‘तेरे इश्क में’ बॉक्स ऑफिस कलेक्शन दिन 7: रणवीर सिंह की ‘धुरंधर’ के साथ सप्ताहांत टकराव से पहले धनुष-कृति सैनन अभिनीत फिल्म की कमाई 5.75 करोड़ रुपये तक गिर गई। |रसगुल्लों की कमी के कारण दूल्हे और दुल्हन के रिश्तेदारों के बीच विवाद शुरू हो गया। भारत समाचार‘विमान तैयार है लेकिन हमारे पास कोई पायलट नहीं है’कर्नाटक ने सरकारी स्कूलों में टेलीस्कोप योजना को व्यापक रूप से लागू करने की योजना बनाई है‘भूराजनीतिक अनिश्चितता के बावजूद’: राजनाथ ने रूस के साथ रक्षा संबंधों की सराहना की; ट्रम्प के लिए संदेश? | भारत समाचारकुडनकुलम परमाणु संयंत्र में बम का खतरा: तलाशी अभियान शुरू; ईमेल में पुतिन की यात्रा का जिक्र है‘मुझसे ज्यादा स्किन किसी के पास नहीं’: जो रूट का शतक मैथ्यू हेडन के लिए बड़ी राहत; यहाँ जानिए क्रिकेट समाचार क्यों‘प्रतिनिधिमंडल का विवेक’: सरकार ने एलओपी-आगंतुक बैठकों के दावे पर राहुल गांधी का पलटवार किया; उनसे मिलने वाले गणमान्य व्यक्तियों के नाम बताए | भारत समाचार

क्या चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना अपराध की श्रेणी में नहीं आता? सुप्रीम कोर्ट कल इस याचिका पर सुनाएगा अपना अहम फैसला

Follow

Published on: 23-09-2024
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा, जिसमें कहा गया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा द्वारा फैसला सुनाए जाने की संभावना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ अपने मोबाइल फोन पर बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने के लिए आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आजकल बच्चे पोर्नोग्राफी देखने के गंभीर मुद्दे का सामना कर रहे हैं और उन्हें दंडित करने के बजाय, समाज को उन्हें शिक्षित करने के लिए ‘पर्याप्त परिपक्व’ होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दो याचिकाकर्ता संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का की दलीलों पर ध्यान दिया था कि उच्च न्यायालय का निर्णय इस संबंध में कानूनों के विपरीत था।
वरिष्ठ अधिवक्ता फरीदाबाद स्थित एनजीओ ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ और नई दिल्ली स्थित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से पेश हुए। ये दोनों संगठन बच्चों के कल्याण के लिए काम करते हैं। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने एस हरीश के खिलाफ पोक्सो अधिनियम-2012 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया था।

Manvadhikar Media – आपका भरोसेमंद न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म।
देश–दुनिया, ऑटोमोबाइल, बिज़नेस, टेक्नोलॉजी, फाइनेंस, मनोरंजन, एजुकेशन और खेल से जुड़ी ताज़ा और विश्वसनीय खबरें निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ आप तक पहुँचाना हमारा वादा है।

Follow Us On Social Media

Facebook

Youtube Channel