प्रत्येक आत्मा के भीतर केवल ज्ञान रूपी सूर्य शक्ति के रूप में विद्यमान हैआचार्य श्री समयसागर जी महाराज

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कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य विद्या शिरोमणि पूज्य आचार्य श्री समयसागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा सूर्य के पास धरती को प्रकाशित करने की क्षमता है अपनी किरणों के माध्यम से पूरे विश्व को प्रकाशित करता है। प्रकाशित करने की योग्यता उसके पास है और इस धरती से काफी दूर है हजारों नहीं लाखों किलोमीटर ।इसके उपरांत भी

एक छोटा सा बादल का टुकड़ा उसके सामने आ जाए फिर प्रकाश अवरूद्ध हो जाता है किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती। चारों ओर यदि मान लो घटाएं छाई हैं तो कैसा लगता है ऐसा लगता है जैसे शाम होने को है और इतनी दूर से अपनी किरणों के माध्यम से भी कमल को खिला देता है

किंतु व्यवधान उपस्थित हो जाता है उसकी क्षमता भी समाप्त जैसे हो जाती है। उसी प्रकार प्रत्येक आत्मा के भीतर केवल ज्ञान रूपी सूर्य शक्ति के रूप में विद्यमान है और उसको उद्धघाटित करने के लिए बार-बार प्रयास किया गया है ।किंतु उस केवल ज्ञान रूपी ज्योति से भी ऐसी कोई अपूर्व शक्ति है जिस शक्ति के माध्यम से वह केवल ज्ञान नष्ट हुआ है ऐसा आगमकार का कहना है ।किंतु वह शक्ति तो है शक्ति कहीं गई नहीं है। दो प्रकार की शक्ति हुआ करती है।एक वैभागिक शक्ति एक स्वाभाविक शक्ति किंतु इन दोनों की अभिव्यक्ति एक साथ संभव नहीं दिन रहेगा तो रात नहीं रहेगी रात रहेगी तो दिन संभव नहीं दोनों स्वअनुवशता दोष इसे बोलते एक साथ देखना चाहे तो संभव नहीं । उसी प्रकार मोह का अंधकार छाया हुआ है और उस अंधकार के सद्भाव में केवल ज्ञान रूपी ज्योति प्रकट नहीं हो सकती है और उस केवलज्ञान को प्रकट करने के लिए बार-बार यह संसारी प्राणी प्रयत्न करता है किंतु अभी तक सफल नहीं हुआ। उसका प्रयत्न उसका पुरुषार्थ फिर कब सफल होगा महाराज संभावना है कि नहीं संभावना तो है यदि वह भव्य है तो निश्चित रूप से उदघाटित होगी। लेकिन एक और विषय आगम के आधार से आपके सामने रख रहा हूं कि ऐसी भी जीव है दूरन्दून भव्य की बात नहीं कर रहा हूं वह तो है ही अभव्य तो जाएंगे नहीं दूरन्दून भव्य को मुक्ति नहीं मिलेगी ।किंतु ऐसे भी अनंत भव्य जीव हैं उनके लिए भी भविष्य में मुक्ति मिल सकती है क्या? प्रश्न है ? अनंतानंत भव्य जीव हैं जिनके पास रत्नत्रय को उपलब्ध करने की क्षमता विद्यमान है उसके बाद भी क्योंकि संसार का अंत जो होता है वह व्यक्तिगत संसार का अंत हो सकता है किंतु नाना जीवन के अपेक्षा से संसार का अंत नहीं हो सकता ।भविष्य में अनंत काल में ऐसे भी जीव उपलब्ध रहेंगे जो भव्य होकर भी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। एक जीव की अपेक्षा से तो संभव है किंतु नाना जीव की अपेक्षा अनंतानंत जीव है। भव्य जीव उनका यदि अभाव हो जाएगा तो संभव नहीं क्योंकि मोक्ष मार्ग भी अनादि अनिधन है और संसार मार्ग भी अनादि अनिधन है। संसार समाप्त नहीं होगा और श्रद्धान का विषय आपके सामने रख दूं आपको आश्चर्य होगा ऐसा नेमीचंद सिद्धांत चक्रवर्ती ने गोमटसार में उल्लेख किया है।