दमोह संवाददाता पुष्पेन्द्र रैकवार
कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री महासागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा जब तक स्वयं के चित्त में मुक्ति की अवधारणा जागृत नहीं होगी तब तक मुक्ति का लाभ आत्मा को नहीं मिल सकता। उनका कहने का तात्पर्य है तुमको मोक्ष पुरुषार्थ के लिए स्वयं अपनी अवधारणा को बदलना होगा। तुम्हे मुक्ति को प्राप्त करने के लिए स्वयं उस मार्ग पर चलना होगा। तभी उस मुक्ति का लाभ आपको मिल पाएगा ।कर्मबंधन से मुक्ति के लिए हमें अपने परिणामों को बदलना होगा। हमारे यहां देव शास्त्र गुरु को निमित्त कहा गया है। उस निमित्त को देखकर के उस निमित्त को समझ करके उपादान को जागृत करना है। कर्म वंधन से मुक्त हो सकता है ।समो शरण में दिव्य ध्वनि दिन में चार बार खिरती है। गुरु महाराज कहते हैं दिव्य ध्वनि तो आज भी खिर रही है उस दिव्या ध्वनि की वर्गणाये आज भी हमारे पास आ रही हैं। जो वर्गणायें हैं वह यहां तक आज भी आ रही है लेकिन उन दिव्य ध्वनि की वर्गणाओं का लाभ हम आज भी ले नहीं पाए। क्यों नहीं ले पाए हम उपयोग अन्य जगह लगा रहे हैं ।उपयोग को वहां लगा नहीं पा रहे हैं ।गुरु महाराज कहते हैं उन गुण स्थानों पर चल नहीं सकते पर उन गुण स्थान को छू तो सकते हैं। परिभाषाओं के माध्यम से उन परिणामों को वहां लेकर तो जाओ अगर यह प्रयोग नहीं करते तो यह तुम्हारा प्रमाद कहलाएगा। तुम्हारी भूल कहलाएगी हम भले उन गुण स्थान तक नहीं पहुंच पा रहे है पर ध्यान प्रयोग के माध्यम से उस गुणस्थान को छूने का पुरुषार्थ करना चाहिए ।गुण स्थान तक पहुंचाने का पुरुषार्थ करना चाहिए। भले अनुभूति ना हो हमें लेकिन परिणामों के माध्यम से सामने तो आना चाहिए। लक्ष्य क्या है बंदे तद गुण लब्धे। हम वंदन क्यों कर रहे हैं ।मोक्ष मार्ग की जितनी क्रियाएं होती हैं श्रावक की हो या श्रमण की हो कोई फर्क नहीं पड़ता। आप श्रावक हो या श्रमण हो दोनों की क्रिया का जो लक्ष्य हुआ करता है वह एक हुआ करता है ।कर्म क्षय सम्यक दृष्टि श्रावक भी जो किया करता है कोई बिना लक्ष्य यात्रा करता है उसे यात्रा कहेंगे या भटकाव कहेंगे बोलो भटकाव कहोगे। पर यात्रा तो लक्ष्य को लेकर चलती है ।सम्यक दृष्टि चाहे चतुर्थ गुणस्थान का हो या कहीं का हो वह लक्ष्य तो आत्म उपलब्धि हुआ करती है ।उस लक्ष्य के बिना उस मंजिल को प्राप्त कर ही नहीं सकता। गुरुदेव हमेशा हम लोगों को यह उपदेश देते थे बीनावाराह की बात है सभी बैठे हुए थे मैंने पूछ लिया गुरुदेव मोक्ष मार्ग के लिए कोई सरल साधना बता दें ,अध्यात्म को जानता नहीं ,सिद्धांत का ज्ञान नहीं ,कम पढ़ा लिखा हूं। यहां आप ले आए आगे मार्ग अवरूद्ध न हो आगे में बढ़ता जाऊं कोई सरल उपाय बता दें ।गुरुदेव तो गुरुदेव है वह कभी निराश नहीं करते उन्होंने बोला बहुत अच्छा प्रश्न किया तुमने सुनो उत्तर भी अच्छा देता हूं मोक्ष मार्ग में आगे कैसे बढ़े ।मैं कर्म के आश्रव वंध से कैसे छूटे इसके लिए कुछ नहीं करना है। देखो बुरे परिणामों के लिए किसी भी प्रकार का पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता है ।यह पूर्व कर्म का एक छाया जैसी छाप पूर्व संस्कार के लिए आपको किसी प्रकार का पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता। विचार अर्हत यंत्र की तरह आते रहते हैं चलते रहते हैं अच्छे विचारों के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है ।परिणाम को परिवर्तित करने का नाम ही मोक्ष मार्ग है। अच्छे विचारों को पढ़ना है यही स्वाध्याय है अपने विचारों को परिवर्तित करना है यही त्याग है यही स्वाध्याय है ।योगी योग लगाते उनका यही लक्ष्य है ।स्वयं के परिणाम का चौकीदार स्वयं बनना है ।कुछ ना कुछ परिवर्तन अपने अंदर आना चाहिए। प्रतिकूलताओं में भी परिणामों की परीक्षा होती है अनुकूलता में नहीं।