शिक्षा और समझदारी: भारतीय समाज का आधार – वरून चौबे
भारत, एक ऐसा देश जहाँ विविधता में एकता की मिसाल देखने को मिलती है, वहाँ शिक्षा और समझदारी का महत्व भी अद्वितीय रूप से गहराई से निहित है। भारतीय समाज की रग-रग में बसे इस महत्व को उसके धरोहर, इतिहास और साहित्य में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वेदों से लेकर तुलसीदास जी के रामचरितमानस तक, और गीता के अमर संदेशों से लेकर आधुनिक भारत की शिक्षा नीतियों तक, शिक्षा का उद्देश्य हमेशा से व्यक्ति के समग्र विकास और समाज के उत्थान के लिए रहा है।
“विद्या ददाति विनयं” और “कवि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू।सकल कला सब बिद्या हीनू।।” जैसे शास्त्रीय उद्धरण न केवल ज्ञान के महत्व को बताते हैं, बल्कि इस ज्ञान को संजोने के लिए विनम्रता और स्व-जागरूकता की भी आवश्यकता पर बल देते हैं। यह वह संदेश है जो हर उम्र और हर वर्ग के भारतीयों को आज भी प्रेरित करता है।
आज के युग में जहाँ तकनीकी विकास और आर्थिक प्रगति ने शिक्षा को नए आयाम प्रदान किए हैं, वहीं यह जरूरी है कि हम उस मूल भावना को न भूलें जो हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाई। शिक्षा का अर्थ केवल डिग्रियां हासिल करना नहीं, बल्कि उस ज्ञान का उपयोग समाज के कल्याण और देश की प्रगति के लिए करना है।
इसके अलावा, समझदारी या विवेक का विकास भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह समझदारी ही है जो हमें ज्ञान का सही उपयोग करने, अच्छे और बुरे में फर्क करने और जीवन के विविध चुनौतियों का सामना करने में सहायक होती है। एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो न केवल ज्ञान प्रदान करे बल्कि विवेक का विकास भी करे।
इस आधार पर, हमें एक समाज की ओर अग्रसर होना चाहिए जहाँ शिक्षा और समझदारी दोनों को समान महत्व दिया जाता है। जहाँ युवा पीढ़ी को विवेकशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिले। जहाँ वृद्ध पीढ़ी अपने अनुभवों को साझा कर युवाओं के विकास में योगदान दे।
आइए, हम सभी मिलकर एक ऐसे भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाएं जहाँ शिक्षा और समझदारी भारतीय समाज के आधारस्तंभ बने। एक ऐसा भारत जो अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ हो और विश्व मंच पर अपनी अनूठी पहचान बनाए।