छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, इतिहास जानकर चौंक जाएंगे आप

उत्तर प्रदेश महाराज गंज

विनोद प्रजापति उर्फ सनोज कि रिपोर्ट

घर नहीं बल्कि छठ में गांव-समाज बुलाता है
दशहरा-दिवाली खत्म होते ही छठ की तैयारी शुरू हो जाती है, पढ़ाई या काम की वजह से गांव छोड़ चुके लड़कों के पास बचपन के यार-दोस्त भी फोन कर पूछते हैं,’छठ के लिए कब आ रहे हो..अभी घाट बनाने का काम भी शुरू नहीं हुआ है, जल्दी आओ’ । बचपन की यादों में एक याद घाट को कायदे से बनाने की भी होती है, पढ़ाई में कमजोर युवा भी घाट बनाने का माहिर हो सकता है.. सीढ़ी ऐसी हो कि व्रतियों को दिक्कत ना हो, डाला और सूप ठीक से रखा जाए इत्यादि।
एकता का एहसास ही छठ है, इस महा अनुष्ठान में किसी पंडित-पुरोहित की जरूरत नहीं होती। घाट पर जब लोग एक दूसरे के बगल में ‘दाउरा’ रखते हैं तो कोई किसी की जाति नहीं पूछता। ‘रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं..’ रहीम ने मांगने को बुरा कहा है और समाज में भी मांगने को अच्छा नहीं माना जाता मगर छठ में प्रसाद मांगकर खाना नसीब से ही नसीब होता है।

घर से दूर रहने वाले जब दशहरा-दिवाली की छुट्टी की कुर्बानी देकर भी अपने गांव-घर नहीं जा पाते छठ उनसे भी नहीं छूटता और छूट भी कैसे सकता है। छठ का प्रसाद उनके महानगर में उन्हें ढूंढते हुए उनतक पहुंच ही जाता है।
भविष्य की जरूरत है छठ पूजा
आधुनिकता के दौर में दुनिया हर पल बदल रही है, घर 2BHK और जहां भर की जानकारी मोबाइल तक सीमित हो गई है। ऐसे में छठ भावी पीढ़ी को ये बताएगा कि घर अपार्टमेंट के फ्लैट को नहीं कहते, छठ उन्हें गांव ले जाएगा और अपनों से मिलवाएगा।
‘रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला..’ सबसे कठिन व्रतों में एक छठ करने वाली व्रती छठी मइया से सोना-चांदी नहीं बल्कि बेटी मांगती है। आप ही बताइए क्या है कोई दूसरा ऐसा व्रत जहां समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए पूजा होती हो।
आज जिस स्वच्छता अभियान की बात होती है, सदियों से वह छठ पूजा की आत्मा है। छठ मनाइए और नदी बचाइए क्योंकि अगर नदी नहीं होगी तो छठ का गीत ‘घुटी भर धोती भींजे’ कैसे बजेगा।

छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है।सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।कहा जाता है यह पर्व बिहारीयों का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं।बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे जाते हैं।धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है।छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है।

त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पार्व से, जिसका मतलब ‘अवसर’ या ‘त्यौहार’) आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष – बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं।कुछ भक्त नदी के किनारों के लिए सिर के रूप में एक प्रोस्टेशन मार्च भी करते हैं।

छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई
छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि विधान से की जाती है। छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक क​था राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। आइए जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कथाएं क्या हैं।

1. राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।
उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।

2. श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना

पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।

3. द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत

पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।

4. दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा

महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।