सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करते हुए कहा है कि सरकार की आलोचना करने पर आपराधिक मामले नहीं दर्ज किए जा सकते।
यह टिप्पणी पत्रकारिता की स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है और लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी का सम्मान करती है। जानें कैसे यह फैसला पत्रकारों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है।
भारत में पत्रकारों के खिलाफ बढ़ते दमन के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि केवल सरकार की आलोचना करने पर पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले नहीं दर्ज किए जा सकते। इस निर्णय के पीछे का मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण करना है।
जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने स्पष्ट किया है कि संविधान के अनुच्छेद-19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार सुरक्षित हैं। इस टिप्पणी ने उन पत्रकारों के लिए राहत का काम किया है, जो विभिन्न राजनीतिक दलों के खिलाफ अपने विचार व्यक्त करने के लिए दमन का शिकार हुए हैं। हाल के वर्षों में, कई पत्रकारों को गिरफ्तारी और मारपीट का सामना करना पड़ा है, जिससे उनकी आवाज़ दबाने की कोशिश की गई है।
यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज मुकदमे की सुनवाई के दौरान आई है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पत्रकारों को अधिक निडरता और निर्भीकता के साथ अपने पेशे को निभाने के लिए प्रेरित करेगा। हालांकि, यह देखने की बात होगी कि क्या इस फैसले का प्रभाव सरकारों और राजनीतिक दलों पर पड़ता है, जो अक्सर आलोचना को सहन नहीं कर पाते।
वास्तव में, पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, और यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पत्रकार न केवल समाचार पहुँचाते हैं, बल्कि वे समाज में जागरूकता फैलाने का काम भी करते हैं। आज के डिजिटल युग में, पत्रकारों का कार्य और भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि वे हमें सचेत करते हैं और जनहित के मुद्दों को उजागर करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस समय आई है जब देश में पत्रकारों को कई संकटों का सामना करना पड़ रहा है। पत्रकारों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियों के तहत मामले दर्ज करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों को उनके अधिकारों की याद दिलाई है, जो एक सशक्त लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।
हालांकि, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सत्ताधारी दल और उनके नेता अक्सर पत्रकारों के प्रति आक्रामक रुख अपनाते हैं। प्रेस की स्वतंत्रता को न केवल कानूनी रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी सुरक्षित रखना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने जो संदेश दिया है, वह स्पष्ट है: पत्रकारिता को दबाने की कोशिशें लोकतंत्र को कमजोर करती हैं। आज जब पत्रकारों के हाथ में कलम है, उन्हें अपनी आवाज़ को उठाने और सच्चाई का सामना करने का साहस दिखाना होगा।
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि पत्रकार अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाएँ और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें। यदि हम सभी इस दिशा में सक्रिय रहते हैं, तो निश्चित रूप से पत्रकारिता को एक नया जीवन मिलेगा।